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Haridwar - Uttrakhand

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 हरिद्वार - उत्तराखंड  हरिद्वार भारत का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है । यह उत्तराखंड के हरिद्वार जिले का एक प्रमुख सनातनी तीर्थ है। सात पूरियों में से मायापुरी हरिद्वार के विस्तार के भीतर आती है । प्रति 12वें वर्ष जब सूर्य और चंद्र मेष में और बृहस्पति कुंभ राशि में स्थित होते हैं , तब यहां कुंभ का मेला लगता है , उसके छठे वर्ष अर्धकुंभी होती है । हरिद्वार के कई नाम है हरिद्वार , हरिद्वार , गंगा द्वार , कुशावर्त , मायापुरी , कनखल , ज्वालापुर और भीमगोडा ।  पद्म पुराण के अनुसार हरिद्वार को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है। यहां जो मनुष्य एकाग्र होकर कोटि तीर्थ में स्नान करता है , उसे पुंडरीक यज्ञ का फल मिलता है । वह अपने कल का उद्धार करता है । यहां एक रात निवास करने से सहस्त्र गो-दान का फल मिलता है सप्तगंगा , त्रिगंगा और शुक्रवर्त में विधिपूर्वक देवर्षिपितृतर्पण करने वाला पुण्यलोक में प्रतिष्ठित होता है । ऐसा करने वाला अश्वमेध यज्ञ का फल पता है और स्वर्ग का स्वामी होता है । पुराणों में लिखा है कि आदिकाल में ब्रह्मा जी ने विराट यज्ञ का अनुष्ठान किया था । वह अनुष्ठान उन्होंने हरिद्वार में ही किया था ,

Dwarkadhish Temple - Gujarat

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 द्वारकापूरी ( सौराष्ट्र ) गुजरात भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका की गणना सात पीढ़ियों मे भी कि जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरकाल मे शांतिपूर्वक एकांत क्षेत्र मे रहने के उद्देश्य से सौराष्ट्र ( गुजरात ) के समुद्र तट पर द्वारकापुरी नामक नगरी बसाई। वहां उन्होंने अपना राज्य स्थापित किया । उन्होंने भगवान विश्वकर्मा द्वारा समुद्र में ( कुशस्थली द्वीप में ) द्वारकापुरी बनवाई और मथुरा से सभी यादवों को यहां ले आए । श्री कृष्ण के लीला संवरण के पश्चात द्वारका समुद्र में समा गई, केवल श्री कृष्ण का निजी भवन नहीं डूबा । वज्रनाथ ने यही पर श्रीरणछोड़राय के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की । यहां मर्दादित सागर भगवान श्री कृष्ण के चरणों को धोया करता था । यही कंचन और रत्नजड़ित मंदिर की सीढ़ियों पर खड़े होकर दीन - हीन सुदामा ने मित्रता कि दुहाई दी थी । अपने मित्र सुदामा का नाम सुनते ही श्री कृष्ण नंगे पैर उठकर उनसे मिलने को दौड़े थे । यही वह स्थान है जहां वियोगिनी मीरा ने अपने प्रियतम के चरणों पर अपने प्राण न्योछावर किए थे । सतयुग में महाराज रेवत ने समुद्र के मध्य की भूमि पर कुश बिछाकर

Badrinath Dham

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 बद्रीनाथ धाम  हमारे देश मे चार तीर्थ स्थानों को अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना जाता है ।  1- बद्रीनाथ  2- द्वारका  3- जगन्नाथ  4- रामेश्वरम इन चारों तीर्थ स्थानों में बद्रीनाथ सबसे महत्वपूर्ण है । कहा जाता है कि यहां बद्री ( बेर ) के घने वन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम बद्री वन पड़ा । बाद मे आदि शंकराचार्यजी के समय इस स्थल का नाम बद्रीनाथ पड़ा। बताया जाता है कि यहां व्यास मुनि का आश्रम था । पुराणों में बद्रीनाथ को सबसे प्राचीन क्षेत्र बताया गया है । इसकी स्थापना सतयुग मे हुई थी । कहा जाता है कि नर और नारायण नामक दो ऋषि थे । उन्हें भगवान विष्णु का चौथा अवतार कहा जाता है । उन दोनो ने बद्रिकाश्रम में कठोर तपस्या की थी । उनकी तपस्या से इंद्र का सिंहासन डोल गया । तब इन्द्र ने उन दोनो ऋषियों की तपस्या भंग करने के लिए इंद्रलोक की कुछ अप्सराएं भेजी । इससे नारायण ऋषि को बहुत क्रोध आया । उन्होंने इंद्र को श्राप देना चाहा , किन्तु नर ऋषि ने उन्हें शांत कर दिया । तब इन्द्र को सीख देने के लिए नारायण ऋषि ने इंद्र द्वारा भेजी गई सभी अप्सराओं से सुंदर एक अप्सरा का निर्माण किया । उस अप्सरा का नाम

Varah Caves - Tamilnadu

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 वराह गुफा मंदिर - तमिलनाडु तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले मे बंगाल कि खाड़ी के कोरोमंडल तट पर मामल्लपुरम में स्थित एक प्राचीन गुफा मंदिर है। यह मंदिर चट्टान को काटकर बनाया गया है । यह मंदिर पहाड़ी चोटी पर स्थित गांव का एक हिस्सा है , जो महाबलीपुरम से 4 km ( 2.5 मील ) उत्तर में स्थित है । यह प्राचीन मंदिर सातवीं सदी के अंत से भारतीय रॉक कट वास्तुकला का एक अप्रतिम उदाहरण है । इस मंदिर के ऐतिहासिक परिदृश्य और खूबसूरती को देखते हुए इसे 1984  मे UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया जा चुका है । भगवान विष्णु की प्रतिमा इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है । वराह अवतार में भगवान विष्णु कि यह मूर्ति एक पौराणिक कथा को चित्रित करती है जब धरती माता को बचाने के लिए श्री विष्णु ने वराह अर्थात सूअर ( कूर्म ) का रूप धारण किया था । पौराणिक कथा के अनुसार जब हिरण्याक्ष ने धरती माता को कष्ट पहुंचाया तब मां वसुंधरा जल में डूब गई थी । तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर राक्षस को मारकर अपने दांतों के सहारे धरती माता की रक्षा की । गुफा में सबसे प्रमुख मूर्ति हिंदू भगवान विष्णु की है, जो वराह या सूअर के अवतार में भू

Sringeri - Karnataka

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 Sringeri - Karnataka  श्रृंगेरी शारदा पीठ कर्नाटक राज्य के चिकमगलूर जिले में तुंगा नदी के तट पर स्थित है । यह शारदा पीठ आदी गुरु  शंकराचार्य द्वारा ईसवी सन् 725 मे भारतवर्ष मे स्थापित हिन्दू धर्म के चार पीठों मे से एक दक्षिण पीठ है । यह मंदिर एक छोटी पहाड़ी के ऊपर स्थित है जहां लगभग 170 सीढ़िया पार कर पहुंचा जा सकता है । यह मंदिर तुंगा नदी के पार नरसिंह वन मे स्थित है । यह शहर श्री शारदम्बा , श्री विद्याशंकर, श्री मलहनीकरेश्वर और अन्य देवताओं के मंदिरों में बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। श्रृंगेरी नाम ऋष्यश्रृंग-गिरि से लिया गया है, जो पास की एक पहाड़ी है जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें ऋषि विभांडक और उनके पुत्र ऋष्यश्रृंग का आश्रम था। रामायण के बाल-कांड के एक प्रसंग में , वशिष्ठ बताते हैं कि कैसे ऋष्यश्रृंग ने रोमपद के सूखे से त्रस्त राज्य में बारिश लाई। श्री आदि शंकराचार्य ने अपने शिष्यों को रहने और शिक्षा देने के लिए इस स्थान को चुना था, क्योंकि जब वे तुंगा नदी के किनारे टहल रहे थे, तो उन्होंने एक फन उठाए हुए नाग को देखा, जो प्रसव पीड़ा से गुज़र रहे एक मेंढ

Hawa Mahal Jaipur Rajasthan

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 Hawa Mahal - Jaipur Rajasthan  भारत के राजस्थान के पिंक सिटी जयपुर मे स्थित हवा महल प्राचीन भारतीय नक्काशी का एक अप्रतिम उदाहरण है । हवा महल को शहर के सबसे प्रसिद्ध स्मारकों मे से एक माना जाता है । हवा महल का निर्माण 1799 मे जयपुर के कछवाहा शासक महाराज सवाई प्रताप सिंह ने रॉयल सिटी पैलेस के विस्तार के रूप मे करवाया था । हवा महल का डिजाइन कृष्ण के मुकुट के आधार पर लाल चंद उस्ताद ने तैयार किया था । राजस्थान का यह प्रसिद्ध महल राजस्थान की राजधानी के केंद्र में स्थित है। जयपुर के "गुलाबी शहर" की दृश्य भाषा को ध्यान में रखते हुए, हवा महल पूरी तरह से लाल बलुआ पत्थर से बना है , जो सूरज की रोशनी में गुलाबी रंग के साथ चमकता है। इसे बिना नींव के निर्मित दुनिया की सबसे ऊंची इमारत के रूप में पहचाना जाता है। हवा महल को एक पर्दे के रूप में बनाया गया था। इस वास्तुशिल्प पर्दे के माध्यम से शाही घराने की महिलाएँ जो घूंघट प्रथा का सम्मान करते हुए त्यौहार और अन्य उत्सवों को इन नक्काशीदार खिड़कियों से स्वतंत्र रूप से देख सकती थीं । इसका अग्रभाग, जो 50 फीट (15 मीटर) ऊंचा है, जिनमे 953 खिड़कियां ह

Ranakpur Jain Temple - Rajasthan Jodhpur

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 रणकपुर जैन मंदिर  - राजस्थान जोधपुर  राजस्थान के पाली जिले के अंतर्गत सादड़ी शहर के निकट ही रणकपुर गाँव है जो भारत की अप्रतीम वास्तुकला को समेटे हुए है । रणकपुर गांव दो बड़े पर्यटक स्थल - जोधपुर और उदयपुर के बीच स्थित है । रणकपुर जैन मंदिर या चतुर्मुख धारणा विहार एक प्राचीन श्वेतांबर जैन मंदिर है । यह मंदिर जैन संस्कृति के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण मंदिरों मे से एक है । इस मंदिर का निर्माण 15वि शताब्दी मे हुआ था । पाली जिले के अरावली पर्वत की घाटियों मे स्तिथ यह ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर है जो चारों ओर जंगल से घिरा हुआ है। 1446 विक्रम सम्वतः मे इस मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ जो 50 से अधिक वर्षों तक चला । मंदिर में 4 प्रवेश द्वार है  , 1444 खंबे , 29 हाल , 80 गुम्बद और 426 स्तंभ है । मंदिर के मुख्य गृह में तीर्थकर आदिनाथ की संगमरमर की चार विशाल मूर्तियां है   जो चार अलग दिशाओं की ओर उन्मुख है । इसी कारण से इसे चतुर्मुख मंदिर कहा जाता है । मंदिर मे 76 छोटे गुंबदनुमा पवित्र स्थान , 4 बड़े प्रार्थना कक्ष तथा 4 बड़े पूजन स्थल है । ये मनुष्य को जीवन मृत्यु की 84 lakh योनियों से मुक