Badrinath Dham

 बद्रीनाथ धाम 



हमारे देश मे चार तीर्थ स्थानों को अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना जाता है । 

1- बद्रीनाथ 

2- द्वारका 

3- जगन्नाथ 

4- रामेश्वरम

इन चारों तीर्थ स्थानों में बद्रीनाथ सबसे महत्वपूर्ण है । कहा जाता है कि यहां बद्री ( बेर ) के घने वन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम बद्री वन पड़ा । बाद मे आदि शंकराचार्यजी के समय इस स्थल का नाम बद्रीनाथ पड़ा। बताया जाता है कि यहां व्यास मुनि का आश्रम था । पुराणों में बद्रीनाथ को सबसे प्राचीन क्षेत्र बताया गया है । इसकी स्थापना सतयुग मे हुई थी । कहा जाता है कि नर और नारायण नामक दो ऋषि थे । उन्हें भगवान विष्णु का चौथा अवतार कहा जाता है । उन दोनो ने बद्रिकाश्रम में कठोर तपस्या की थी । उनकी तपस्या से इंद्र का सिंहासन डोल गया । तब इन्द्र ने उन दोनो ऋषियों की तपस्या भंग करने के लिए इंद्रलोक की कुछ अप्सराएं भेजी । इससे नारायण ऋषि को बहुत क्रोध आया । उन्होंने इंद्र को श्राप देना चाहा , किन्तु नर ऋषि ने उन्हें शांत कर दिया । तब इन्द्र को सीख देने के लिए नारायण ऋषि ने इंद्र द्वारा भेजी गई सभी अप्सराओं से सुंदर एक अप्सरा का निर्माण किया । उस अप्सरा का नाम उन्होंने उर्वशी रखा और उसे इंद्र के पास भेज दिया । जब इंद्र द्वारा भेजी अप्सराओं ने नारायण ऋषि से विवाह करने की इच्छा प्रकट की , तब नारायण ऋषि ने उन्हें वचन दिया कि वे अगले जन्म में उन सबके साथ विवाह करेंगे । इस प्रकार अगले जन्म में नारायण ' श्रीकृष्ण ' हुए तथा नर ' अर्जुन ' हुए ।

स्थान का महत्त्व 


इस स्थान का धार्मिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक महत्व तो है ही, साथ में सैनिक महत्व भी है । हिमालय के दो बड़े दर्रे ' माना और नीति ' यही आकार निकलते है । बद्रीनाथ आदिकाल से भारत - तिब्बत सीमा प्रहरी है । माना गांव बद्री से केवल दो मील आगे है । यहां सेना तथा सुरक्षा बल का पहरा होता है , जबकि दर्रा गांव माना से लगभग पच्चीस मील आगे है । इसके बाद तिब्बत की सीमा आ जाती है । कहा जाता है जब बौद्ध धर्म की स्थापना हुई, उसके बाद तिब्बत के लोगो ने भारत पर आक्रमण किया तथा वहा की संस्कृति पीठ बद्रीनाथ को नष्ट कर दिया । भगवान विष्णु की प्रतिमा को नर्क कुंड मे डाल दिया । बाद में शंकराचार्य जी ने इस प्रतिमा को निकालकर गरूड़ गुफा में स्थापित कर दिया । इसके बाद चंद्रवंश के गढ़वाल नरेश ने यहां एक मंदिर बनवाया तथा अहिल्या बाई ने सोने का शिखर चढ़ाया । बद्रीनाथ भावनात्मक एकता का आधार भी है । कहते है कि जब तक उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ पुरी के तांबे के कड़े बद्रीनाथ में ना चढ़ाएं जाए तब तक तीर्थ यात्रा अधूरी रहती है । बद्रीनाथ का मंदिर नर और नारायण पर्वत के बीच मे नारायण पर्वत के निकट है । विशाल बद्री में पांच तीर्थ है - 

1. ऋषि गंगा

2. कुर्मधारा

3. तप्तकुंड

4. प्रह्लाद धारा

5. नारदकुंड 

बद्रीनाथ धाम में अलकनंदा स्नान करना अत्यंत कठिन है । इसलिए तप्तकुंड मे स्नान करके यात्री मंदिर दर्शन को जाते है । वंतुलसी की माला , चने कि कच्ची डाल , गरी का गोला , मिश्री आदि प्रसाद चढ़ाएं जाते है । मंदिर जाते समय बाई ओर शंकराचार्य का मंदिर है । मुख्य मंदिरों के सामने ही गरूड़ जी है । श्री बद्रीनाथ जी कि मूर्ति शालिग्राम शीला मे बनी ध्यानमग्न चतुर्भुज मूर्ति है । पहली बार यह मूर्ति देवताओं ने अलकनंदा में नारदकुंड मे से निकलकर स्थापित की । देवर्षि नारद उसके प्रधान अर्चक हुए । 

उसके बाद जब बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ तब इस मंदिर पर उनका अधिकार हो गया । उन्होंने बद्रीनाथ की मूर्ति को बुधमूर्ति मानकर पूजा करना जारी रखा । जब शंकराचार्य जी बौद्ध को पराजित करने लगे , तब इधर के बौद्ध तिब्बत भाग गए , और मूर्ति को अलकनंदा में फेंक गए । शंकराचार्य जी ने जब मंदिर खाली देखा तब ध्यान करके अपने योगबल से मूर्ति की स्थिति जानी और अलकनंदा से मूर्ति को निकालकर पुनः मंदिर में प्रतिष्ठित करवाया । तीसरी बार मंदिर के पुजारी ने ही मूर्ति को तप्तकुंड मे फेंक दिया और वहा से चला गया, क्योंकि उस समय वहा यात्री नही आते थे । उसे सूखे चावल भी भोजन में नही मिलते थे । उस समय पंडुकेंखर मे किसी को घंटाकर्ण का आवेश हुआ और उसने बताया की भगवान का श्रीविग्रह तप्तकुंड मे पड़ा है । इस बार मूर्ति को तप्तकुंड से निकलकर श्रीरामानुजाचार्य द्वारा प्रतिष्ठित किया गया । 

Aadishankarachaarya 

श्री बद्रीनाथ की दाईं तरफ कुबेर की पीतल की मूर्ति है । उनके सामने उद्धव जी है तथा बद्रीनाथजी की उत्सव मूर्ति है । यह उत्सव मूर्ति शीतकाल में जोशीमठ बनी रहती है । उद्धव जी के पास ही चरणपादुकाए है । बाईं ओर नर- नारायण की मूर्ति है । इनके निकट ही श्री देवी और भू-देवी है । मुख्य मंदिर के बाहर मंदिर के घेरे मे ही शंकराचार्य की गद्दी है । मंदिर का कार्यालय है यहां भेंट चढ़ाकर रसीद ले लेने से दूसरे दिन प्रसाद मिल जाता है । जहा घंटा लटकता है , वहा बिना धड़ की घंटाकर्ण की मूर्ति है । परिक्रमा में भोगमंडी के पास लक्ष्मी जी का मंदिर है । श्री बद्रीनाथ धाम के सिंह द्वार से चार- पांच सीढ़ी उतरकर शंकराचार्य मंदिर है । इसमें लिंगमूर्ति है । उससे तीन चार सीढ़ी नीचे केदार का मंदिर है । नियम यह है कि आदि केदार के दर्शन करके तब बद्रीनाथ के दर्शन करने चाहिए । केदारनाथ के नीचे तप्तकुंड है , इसे अग्नितीर्थ कहा जाता है । 

तप्तकुंड के नीचे पांच शीला है 

1- गरूड़ शीला

2- नारद शीला 

3- मार्कण्डेय शीला 

4- नरसिंह शीला 

5- वाराही शीला

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