Sanchi Stupa - Madhya Pradesh

 Sanchi Stupa -  Madya Pradesh



सांची बौद्ध स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में बेतवा नदी के तट पर स्थित है। सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है । यह भोपाल से 46 km पूर्वोत्तर में तथा बेसनगर और विदिशा से 10 km दूर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित हैं। अपने अप्रतीम बौद्ध स्मारकों तथा पुरातात्विक धरोहर के कारण यह स्थान सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं । सांची के स्तूप की खोज  जनरल टेलर ने की थी , जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनाएं गए थे । सम्राट अशोक ने 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया था जिनमे से एक सांची का स्तूप भी है। सांची मे छोटे - बड़े कई स्तूप है जिनमे स्तूप संख्या  ( 2 ) सबसे बड़ा है , इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण द्वार है । सांची के तोरण द्वार प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के है । सबसे पहले दक्षिणी तोरण द्वार का निर्माण करवाया गया था । इसके बाद क्रमश उत्तरी , पूर्वी व पश्चिमी तोरण द्वार बने । इन तोरणों में चौपेहल दो स्तंभ है जो 24 ft ऊंचे है । इन पर थोड़ी सी कमानीदार ऊपर की ओर तनी हुई तीन सूचियां है। सांची के स्तंभों पर वर्गाकार पत्थर के टुकड़ों पर ये सूचियां रखी हुई हैं जो दोनो तरफ से बाहर की ओर निकली हुई है । सबसे ऊपर खंबे तथा सूची पर "धर्मचक्र" तथा "वीरत्न" थे । अब ये खण्डित अवस्था में मिलते है। इन सम्पूर्ण तोरण की ऊंचाई 34 ft है। सांची स्तूप का विकास बौद्ध काल मे हुआ। यह स्तूप महापरिनिर्वाण का प्रतीक है । सांची के तोरण द्वार पर भगवान बुद्ध से संबंधित दृश्य अंकित किए गए है । सांची स्तूप लाल बलुआ पत्थर से बना है तथा तोरण द्वार सफेद बलुआ पत्थर का बना है । सांची के महास्तूप का अंड गोलाकार है जो कि मेधी के ऊपर स्थित है । मेधी और वेदिका के बीच में 2.25 mtr की जगह खाली पड़ी है। यह खाली जगह प्रदक्षिणापथ के रूप में उपयोग होती है । स्तूप के ऊपर जाने के लिए मेधि के दक्षिण भाग में चौड़ी दोहरी सीढ़ियां ( सोपान ) है । स्तूप के ऊपर का प्रदक्षिणापथ पत्थर की वेदिका से घिरा है। अंड का शिखर चपटा है , जिसमे वेदिका से घिरी हुई हार्मिका है , जिसके मध्य में यष्टि है । यष्टी में तीन छत्रों से युत छत्रावली है । भारतीय कला में मेधी शब्द स्तूप के वास्तुकला से संबंधित है, मेधी स्तूप के उभरे हुए स्थान को कहा गया है जिस पर गुम्बद को स्थापित किया गया है। सांची स्तूप के स्तंभों के बीच मे वृत्ताकार फलक और किनारों पर तीन सिलवटों वाले दो अर्धवृताकार फलक है । सांची स्तूप अशोक द्वारा उसी समय खड़ा किया गया जब इसके पास अशोक स्तंभ खड़ा किया गया था । तब से ( परवर्ती काल ) लेकर अब तक इसमें काफी परिवर्तन हुए हैं। सांची के तोरण द्वार पर 4 हाथियों की आकृति बनाई गई हैं। सांची के उत्तरी तोरण पर वेसांतर जातक का दृश्य अंकित है। सांची के स्तूप पर असीरिया के फूल - पत्ती, पश्चिम एशिया के पैर वाले राक्षस, नरसिंह , नार्शवन आदि कलाकृतिया उत्कीर्ण है । यहां से ब्रह्मी लिपि में अभिलेख प्राप्त है । सांची के स्तूप मे तोरण द्वार साततवाहन शासकों द्वारा तथा मूर्तियां शुंग राजवंश के शासन काल में बनाई गई है । गौतम बुद्ध से संबंधित जातक कथाओं का चित्रण सांची के स्तूप पर हुआ है ।





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