Amrawati Stupa - Andhra Pradesh

 अमरावती  स्तूप - आंध्र प्रदेश 



 

अमरावती स्तूप आंध्र प्रदेश की राजधानी गुंटूर मे है। इसका प्राचीन नाम धन्यकतक है । अमरावती स्तूप भारत के पालनाडू जिले के अमरावती गांव मे स्तिथ एक बौद्ध स्मारक है । यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण मे है। अमरावती में बौद्ध स्तूप की खोज 1797 मे कर्नल मैकेंजी ने की थी। अमरावती स्तूप गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है इस स्तूप का निर्माण लगभग 1900 साल पहले सतवाहनों द्वारा करवाया गया था। ये बौद्ध धर्म के अनुनायियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्मारक है । अमरावती की मूर्तियां भारत और विदेशों के कई संग्रहालयों में है जिनमे से काफी मूर्तियां क्षतिग्रस्त है । अमरावती स्तूप घंटाकृत में बना है , इस स्तूप मे संगमरमर का प्रयोग हुआ है । अमरावती में ठोस मिट्टी के टीले को जोड़कर स्तूप को बड़ा किया गया जिसमे स्तूप के चारों ओर रेलिंग ( वेदिका ) और नक्काशीदार स्लैब शामिल है । इन्हे ड्रम स्लैब भी कहते है , क्योंकि इन्हे स्तूप के उर्धवधर निचले हिस्से ड्रम ( थोलोबेट ) के चारों ओर रखा जाता था । प्रारंभिक काल ( 200-100 ईसा पूर्व ) में , स्तूप एक साधारण रेलिंग थी जिसमे ग्रेनाइट के खंबे , सादे क्रॉस बार और कोपिंग पत्थर थे । ग्रेनाइट स्तंभों के आकार को देखते हुए यह अनुमान लगाया जाता है कि इस समय स्तूप काफी बड़ा रहा होगा । अमरावती स्तूप का पुनः निर्माण , सर वॉल्टर इलियट द्वारा 1845 के बाद कराया गया । इस अवधि के काम को आम तौर पर रेलिंग मूर्तिकला की शैलियों और सामग्रीयों के आधार पर तीन चरणों मे विभाजित किया गया है । चीनी यात्री बौद्ध भिक्षु हुवेन त्सांग ने अभिधम्मपिटक का अध्ययन किया, विहारों और मठों का उत्साहपूर्ण विवरण लिखा । 14 वी शताब्दी के अंत तक इसका उल्लेख श्रीलंका और तिब्बत में गूढ़ बौद्ध धर्म के केंद्र के रुप मे किया जाता था । भारत मे बौद्ध धर्म के पतन की अवधि के दौरान स्तूप की उपेक्षा कि गई और उसे मलबे और घास के नीचे दबा दिया गया । स्तूप की मूर्तियों का इतिहास जटिल है । अमरावती स्तूप मे उभारदार शैली मे बुद्ध के जीवन तथा जातक कथाओं को अंकित किया गया है । यहां बुद्ध द्वारा हाथियों के समूह को वश में करते हुए दिखाया गया है । स्वदेशी शैली सफेद संगमरमर का प्रयोग मूर्तियों को बनाने के लिए किया गया है । मूर्तियों में त्रिभंग आसन ( तीन झुकावों के साथ शरीर ) का अत्यधिक प्रयोग किया गया है । अमरावती मूर्तिकला मे ज्यादातर जातक कथाओं का वरण मिलता है । कुछ मूर्तियों मे स्त्रियों को बुद्ध के पाव पूजते हुई दर्शाया गया है । अमरावती से भरी मात्रा मे प्राचीन आहत सिक्के प्राप्त हुए है । अमरावती अपने प्रसिद्धि काल मे समृद्ध व्यापारी नगरी थी । समुद्र से कृष्णा नदी होकर अनेक व्यापारी जलयान यह पहुंचते थे इस शहर को स्वयंभू शिवलिंग वाले प्रसिद्ध अमरेश्वर मंदिर से अमरावती नाम मिला है ।




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