Mondhera Sun Temple - Gujrat

 Mondhera Sun Temple - Gujrat 

मोंढेरा सूर्य मंदिर - गुजरात 


भारत में गुजरात के मेहसाना जिले के " मोंढेरा " गांव में पुष्पा वती नदी के किनारे " मोंढेरा सूर्य मंदिर " स्थित है । यह मंदिर गुजरात के पाटन से 30 km की दूरी पर स्थित है । इस मंदिर का निर्माण सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा सन् 1026 - 1027 ई० मे करवाया गया था । मंदिर परिसर के मुख्य तीन भाग है -

1- गूढ़मण्डप ( मुख्य मंदिर )

2- सभामंडप 

3- कुण्ड ( जलाशय )

मोंढेरा सूर्य मंदिर सूर्यदेव के प्रसिद्ध मंदिरों मे से एक है । गूढ़मण्डप ( मुख्य मंदिर ) , चालुक्य वंश के राजा भीमदेव प्रथम के शासनकाल के दौरान बनाया गया है । मन्दिर के स्तंभों पर अत्यंत ही सुंदर नक्काशी की गई है । परिसर की पश्चिम दीवार पर देवनागिरी लिपि मे " विक्रम सम्वतः 1083 " का एक उल्टा लिखा हुआ शिलालेख है जो 1026 - 1027 CE के अनुरूप है । यह शिलालेख मंदिर के विनाश और पुनःनिर्माण का प्रमाण देता है । प्राप्त शिलालेख को निर्माण के बजाय गजनी द्वारा विनाश की तारीख माना जाता है । 1024-25 मे गजनी के मेहमूद ने राजा भीमदेव के राज्य पर आक्रमण किया था , जिसमे लगभग 20,000 सैनिकों की एक टुकड़ी ने उसे मोंढेरा मे रोकने का असफल प्रयास किया था । इतिहासकार ए ० के ० मजूमदार के अनुसार इस मंदिर का निर्माण इस रक्षा के स्मरण के लिए किया गया हो सकता है । मंदिर का मुख्य भाग जिसमे प्रदक्षिणा पथ युक्त गर्भगृह तथा एक मंडप है, एक अलग से बना सभामंडप जिसके सामने एक अलंकृत तोरण द्वार है , तथा पत्थरों से निर्मित एक कुण्ड ( जलाशय ) है जिसे " सूर्य कुण्ड " कहते है , उसके भीतर 108 छोटे आकार के मंदिर है जो देवी शीतलामाता , गणेश , शिव , शेषणायी विष्णु आदि देवताओं को समर्पित है । सूर्य कुण्ड को राम कुण्ड भी कहते है । स्थानीय लोग इस स्थान को " सीता नी चौरी " के नाम से पुकारते है । इस मंदिर का कुण्ड 11 वी शताब्दी में बनवाया गया था । सभामंडप , गूढ़मण्डप के साथ जुड़ा हुआ नहीं है । इनकी छतें ढह चुकी है । पत्थर के स्तंभ अष्टकोणीय योजना मे बनाए गए है । मण्डप की बाहरी दीवारों पर चारों ओर आले बने हुए है जिनमे 12 आदित्यों , दिग्पालों , देवियों तथा 

अप्सराओं की मूर्तियां प्रतिस्थापित है । मंदिर के सभाकुंड मे कुल 52 स्तम्भ है जो साल के 52 हफ्तों को दर्शाते है । यह स्तंभ ऊपर से देखने पर गोलाकार तथा नीचे से अष्टभुजाकार दिखते है । मंदिर मे रामायण महाभारत के प्रसंगों को बेहतरीन नक्काशी द्वारा अलंकृत किया गया है । मंदिर की चौकी उल्टे कमल के पुष्प के समान है , जिन पर असंख्य हाथियों की मूर्तियां बनी हुई है , जिन्हे " गज पेटिका " कहा जाता है । मंदिर की संरचना इस प्रकार से की गई है कि 21 मार्च व 21 सितंबर के दिन सूर्य की प्रथम किरणें गर्भगृह मे स्तिथ मूर्ति के ऊपर पड़ती है । यह मंदिर राष्टीय महत्त्व का स्मारक है जो भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की देखरेख मे है। 



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