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Padmnabh Swami Mandir - Thiruvananthapuram

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 Padmnabh Swami Mandir - Thiruvanthampuram भारत के केरल राज्य के तिरुवनन्तपुरम मे स्तिथ भगवान विष्णु का एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर पद्मनाभस्वामी मंदिर एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों मे से एक है । इस मंदिर का निर्माण ( 1733 ई ) राजा मार्तंड द्वारा करवाया गया था । यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है । पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी है । मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से भगवान विष्णु की एक प्रतिमा प्राप्त हुईं थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया है । मंदिर के गर्भगृह मे भगवान विष्णु शेषनाग पर शयनमुद्रा मे विराजमान है । इस विश्राम अवस्था को " पद्मनाभ " कहा जाता है जिसके कारण यह मंदिर पद्मनाभ स्वामी मंदिर के नाम से विश्व भर मे विख्यात है । तिरुवनन्तपुरम नाम भगवान के " अनंत " नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है । मंदिर के एक ओर समुद्र तट है तथा दूसरी ओर पश्चिमी घाट मे पहाड़ियों का अद्भुत सौंदर्य देखने को मिलता है । माना जाता है की मंदिर ऐसे स्थान पर स्थित है जो सात परशुराम क्षेत्रों में से एक है । स्कंद पुराण और पद्म पुराण

Mahendra Caves - Pokhra Nepal

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 Mahendra Caves - Pokhra Nepal  महेंद्र गुफ़ा एक विशाल चुना पत्थर की गुफा है, जो पोखरा  - 16 बटुलेचौर , के कास्की जिले में स्थित है । यह प्राचीन गुफा नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र के पोखरा शहर में स्थित है । यह गुफा समुद्र तल से लगभग 1100 m ऊपर है । इस गुफा मन्दिर की खोज 1950 के दशक मे पोखरा के चरवाहों ने की थी । इस गुफा का निर्माण युवा ( प्लिस्टोसिन ) चुना पत्थर से हुआ है । इस गुफा का प्राचीन नाम - " अधेरो भवन " था , जिसका शाब्दिक अर्थ है - अंधकारमय निवास स्थान । इस गुफा का नाम देश के तत्कालीन शासक स्वर्गीय राजा महेंद्र बीर विक्रम शाह देव के नाम पर पड़ा  । महेंद्र गुफ़ा भगवान शिव को समर्पित है । इस गुफा मे एक छोटा मंदिर है , जहा एक शिवलिंग , सिद्धिविनायक  और एक गाय की मूर्ति स्थापित है । महेंद्र गुफ़ा के निकट दो अन्य गुफाएं भी है ।  1 - कुमारी गुफा  2 - चमगादड़ गुफा ।

Rani ki Vav - Gujrat

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 Rani ki vav - Gujrat  रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण में स्थित एक प्रसिद्ध बावड़ी ( सीढ़ीदार कुआँ ) है। पाटण को पहले 'अन्हिलपुर' के नाम से जाना जाता था , जो गुजरात की पूर्व राजधानी हुआ करती थी। रानी की वाव ( बावड़ी ) वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम के प्रेम  में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने बनवाया था। सरस्वती नदी के तट पर बनी ये 7 तलों की वाव 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहरी है। इस वाव में 30 किमी लंबी रहस्यमयी सुरंग भी है, जो पाटण के सिद्धपुर में जाकर निकलती है। ऐतिहासिक बावड़ी की  कलाकृति की खूबसूरती यहां आने वाले पर्यटकों का दिल खुश कर देती है, तथा भारत के प्राचीन इतिहास से उनका परिचय भी कराती है।  रानी उदयमति जूनागढ़ के चूड़ासमा शासक रंखेंगार (खंगार) की पुत्री थीं जो सोलंकी राजवंश के संस्‍थापक  थे। सीढ़ी युक्‍त बावड़ी में कभी सरस्वती नदी के जल के कारण गाद भर गया था । वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि अवतार आदि के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं। रानी की वाव चित्र को जुलाई 2018 मे

Amrawati Stupa - Andhra Pradesh

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 अमरावती  स्तूप - आंध्र प्रदेश    अमरावती स्तूप आंध्र प्रदेश की राजधानी गुंटूर मे है। इसका प्राचीन नाम धन्यकतक है । अमरावती स्तूप भारत के पालनाडू जिले के अमरावती गांव मे स्तिथ एक बौद्ध स्मारक है । यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण मे है। अमरावती में बौद्ध स्तूप की खोज 1797 मे कर्नल मैकेंजी ने की थी। अमरावती स्तूप गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है इस स्तूप का निर्माण लगभग 1900 साल पहले सतवाहनों द्वारा करवाया गया था। ये बौद्ध धर्म के अनुनायियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्मारक है । अमरावती की मूर्तियां भारत और विदेशों के कई संग्रहालयों में है जिनमे से काफी मूर्तियां क्षतिग्रस्त है । अमरावती स्तूप घंटाकृत में बना है , इस स्तूप मे संगमरमर का प्रयोग हुआ है । अमरावती में ठोस मिट्टी के टीले को जोड़कर स्तूप को बड़ा किया गया जिसमे स्तूप के चारों ओर रेलिंग ( वेदिका ) और नक्काशीदार स्लैब शामिल है । इन्हे ड्रम स्लैब भी कहते है , क्योंकि इन्हे स्तूप के उर्धवधर निचले हिस्से ड्रम ( थोलोबेट ) के चारों ओर रखा जाता था । प्रारंभिक काल ( 200-100 ईसा पूर्व ) में , स्तूप एक साधार

Hampi temples of Kernataka

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 Hampi Kerantantka  हम्पी मध्य कर्नाटक के पूर्वी भाग में आंध्र प्रदेश के साथ राज्य की सीमा के पास तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है । यहां कुल 20 मंदिरों का समूह है । यह मंदिर शिव के एक रूप भगवान विरुपाक्ष को समर्पित है ।हम्पी कर्नाटक का एक गांव है जो अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विश्वप्रसिद्ध है । हंपी को सन् 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व पुरातत्व स्थल घोषित किया गया। यह मंदिर बादामी और एहोल पुरातात्विक स्थलों से 140 किलोमीटर (87 मील) दक्षिण-पूर्व में है ।  हम्पी - जिसे पारंपरिक रूप से पम्पा-क्षेत्र , किष्किंधा-क्षेत्र या भास्कर-क्षेत्र के रूप में जाना जाता है , जो हिंदू धर्मशास्त्र में देवी पार्वती का दूसरा नाम है। इस प्राचीन नगर का उल्लेख रामायण और हिंदू धर्म के पुराणों में किया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, युवती पार्वती (जो शिव की पिछली पत्नी सती का अवतार हैं) शिव से विवाह करने का संकल्प लेती हैं । शिव दुनिया से बेखबर योग ध्यान में खोए हुए हैं; पार्वती ने उन्हें जगाने और उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए देवताओं से मदद लेती है । इंद्र ने शिव को ध्यान से जगाने के लिए कामदेव - इच्छा,

Ellora Caves Maharashtra

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 एलोरा Caves - Maharashtra , Aurangabad  काल - 600 - 1000 ई० एलोरा भारतीय पाषाण शिल्प स्थापत्य कला का सार है, यहाँ 34 "गुफ़ाएँ" हैं जो एक ऊर्ध्वाधर खड़ी सहाद्री पर्वत का एक फ़लक है। इसमें हिन्दू, बौद्ध और जैन गुफा मन्दिर बने हैं। ये मंदिर पाँचवीं और दसवीं शताब्दी में बने थे। यहाँ 12 बौद्ध गुफाएँ (1-12), 17 हिन्दू गुफाएँ (13-29) और 5 जैन गुफाएँ (30-34) हैं। ये सभी आस-पास बनीं हैं और अपने निर्माण काल की धार्मिक सौहार्द को दर्शाती हैं। इन्हें ऊँची बेसाल्ट की खड़ी चट्टानों की दीवारों को काट कर बनाया गया हैं। यह मंदिर केवल एक खंड को काटकर बनाया गया है। इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। एलोरा का प्राचीन नाम एलापुर अंचल था । इसका निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ( 756 - 72 ) के द्वारा करवाया गया । एलोरा का केंद्रीय स्थल इसका मुख्य मंदिर कैलाश मंदिर है । मन्दिर मे सर्वाधिक चित्र छतों व दीवारों पर बने हैं । मंदिर का शिखर 95 ft ऊंचा 4 मंजिला है । इस मंदिर से दक्कन शैली को प्रेरणा मिली । इस मंदिर योजना शैली मे पदत्तकल स्थित विरूपक्ष मन्दिर शैली का अनुकरण किया । कैलाश मंदिर

Konark Sun Temple - Oddisa

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 Konark Sun Temple - Oddisa भारत के उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी जिले से 26 km दूर समुद्र तट पर उत्तर पूर्व में कोणार्क में स्थित 13वी सदी  (1250) का एक सूर्य मंदिर है । जो कोणार्क सूर्य मंदिर ( Konark Sun Temple ) के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव के द्वारा करवाया गया । यह मंदिर बारह वर्षों मे बनकर तैयार हुआ । इस मंदिर की रचना रथ के रूप में कि गई है जिसमे 24 पहिए ( 12 जोड़े ) है जो बारह राशियों को प्रदर्शित करते हैं । इस मंदिर को ( UNESCO ) ने 1984 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है । भारतीय 10 रुपए के नोट के पीछे भी कोणार्क सूर्य मंदिर का चित्र अंकित है। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित था , स्थानीय लोग इसे " बिरंची नारायण " कहते थे। इसी कारण इस क्षेत्र को ( अर्क = सुर्य ) का क्षेत्र या पद्म क्षेत्र कहा गया है । इस मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ है तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है जिसके कारण इसे भारत में ( Black Pagoda ) के नाम से भी जाना जाता है । यह मंदिर कलिंग शैली में निर्मित है । इस मंदिर में सूर्य देव को