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Ellora Caves Maharashtra

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 एलोरा Caves - Maharashtra , Aurangabad  काल - 600 - 1000 ई० एलोरा भारतीय पाषाण शिल्प स्थापत्य कला का सार है, यहाँ 34 "गुफ़ाएँ" हैं जो एक ऊर्ध्वाधर खड़ी सहाद्री पर्वत का एक फ़लक है। इसमें हिन्दू, बौद्ध और जैन गुफा मन्दिर बने हैं। ये मंदिर पाँचवीं और दसवीं शताब्दी में बने थे। यहाँ 12 बौद्ध गुफाएँ (1-12), 17 हिन्दू गुफाएँ (13-29) और 5 जैन गुफाएँ (30-34) हैं। ये सभी आस-पास बनीं हैं और अपने निर्माण काल की धार्मिक सौहार्द को दर्शाती हैं। इन्हें ऊँची बेसाल्ट की खड़ी चट्टानों की दीवारों को काट कर बनाया गया हैं। यह मंदिर केवल एक खंड को काटकर बनाया गया है। इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। एलोरा का प्राचीन नाम एलापुर अंचल था । इसका निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ( 756 - 72 ) के द्वारा करवाया गया । एलोरा का केंद्रीय स्थल इसका मुख्य मंदिर कैलाश मंदिर है । मन्दिर मे सर्वाधिक चित्र छतों व दीवारों पर बने हैं । मंदिर का शिखर 95 ft ऊंचा 4 मंजिला है । इस मंदिर से दक्कन शैली को प्रेरणा मिली । इस मंदिर योजना शैली मे पदत्तकल स्थित विरूपक्ष मन्दिर शैली का अनुकरण किया । कैलाश मंदिर

Konark Sun Temple - Oddisa

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 Konark Sun Temple - Oddisa भारत के उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी जिले से 26 km दूर समुद्र तट पर उत्तर पूर्व में कोणार्क में स्थित 13वी सदी  (1250) का एक सूर्य मंदिर है । जो कोणार्क सूर्य मंदिर ( Konark Sun Temple ) के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव के द्वारा करवाया गया । यह मंदिर बारह वर्षों मे बनकर तैयार हुआ । इस मंदिर की रचना रथ के रूप में कि गई है जिसमे 24 पहिए ( 12 जोड़े ) है जो बारह राशियों को प्रदर्शित करते हैं । इस मंदिर को ( UNESCO ) ने 1984 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है । भारतीय 10 रुपए के नोट के पीछे भी कोणार्क सूर्य मंदिर का चित्र अंकित है। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित था , स्थानीय लोग इसे " बिरंची नारायण " कहते थे। इसी कारण इस क्षेत्र को ( अर्क = सुर्य ) का क्षेत्र या पद्म क्षेत्र कहा गया है । इस मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ है तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है जिसके कारण इसे भारत में ( Black Pagoda ) के नाम से भी जाना जाता है । यह मंदिर कलिंग शैली में निर्मित है । इस मंदिर में सूर्य देव को

Sanchi Stupa - Madhya Pradesh

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 Sanchi Stupa -  Madya Pradesh सांची बौद्ध स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में बेतवा नदी के तट पर स्थित है। सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है । यह भोपाल से 46 km पूर्वोत्तर में तथा बेसनगर और विदिशा से 10 km दूर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित हैं। अपने अप्रतीम बौद्ध स्मारकों तथा पुरातात्विक धरोहर के कारण यह स्थान सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं । सांची के स्तूप की खोज  जनरल टेलर ने की थी , जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनाएं गए थे । सम्राट अशोक ने 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया था जिनमे से एक सांची का स्तूप भी है। सांची मे छोटे - बड़े कई स्तूप है जिनमे स्तूप संख्या  ( 2 ) सबसे बड़ा है , इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण द्वार है । सांची के तोरण द्वार प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के है । सबसे पहले दक्षिणी तोरण द्वार का निर्माण करवाया गया था । इसके बाद क्रमश उत्तरी , पूर्वी व पश्चिमी तोरण द्वार बने । इन तोरणों में चौपेहल दो स्तंभ है जो 24 ft ऊंचे है । इन पर थोड़ी सी कमानीदार ऊपर की ओर तनी हुई तीन सूचियां है। सांची के स्तंभों पर वर्गाकार पत्थर के टुकड़ों पर ये सूचियां रखी हुई हैं जो दोनो

Sittanvasal Caves - Karnataka

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 Sittanvasal Caves - Tamil Nadu सित्तानवासल की गुफाएं दक्षिण भारत के तामिल नाडू के तंजौर जिले के अंतर्गत पुडुकोट्टाई से उत्तर - पश्चिम की ओर 9 मील कि दूरी पर कृष्णा नदी के तट पर स्थित है । सित्तानवास्ल शब्द का अर्थ है जैन संतों का निवास स्थान । यह गुफाएं जैन धर्म से संबंधित है। इन गुफाओं की खोज 1934 में प्रोफ़ेसर दुर्बिल ने कि थी । इन गुफाओं का निर्माण काल 7 वीं से 8 वीं सदी माना जाता है । यह गुफाएं पूर्ण चित्रों से अलंकृत थी , किंतु वर्तमान समय में इन गुफाओं कि छतों एवं स्तंभों पर ही चित्र प्राप्त है । पल्लव शासक महेंद्र वर्मन ने इन गुफाओं में पांच जैन मूर्तियो का निर्माण करवाया था । जैन धर्म से संबंधित कला का प्रथम उदाहरण यही से प्राप्त है । गुफा कि छतों पर मीन, मकर , कच्छप , भैंस और पक्षियों के समुदाय , तीन दिव्य पुरुष आकृतियां फूल तोड़ते हुए दर्शाया गया है । अर्धनारीश्वर का उत्कृष्ट चित्र , एक राजा , एक गंधर्व का चित्रण जिसके हाथ में कमल है , चित्रित है । खंभों के ऊपरी भाग में दो अप्सराओं का चित्र अंकित है । सित्तानवासल की गुफाओं को चट्टान काटकर बनाया गया है । सित्तानवासल को अहीर क

Udaygiri Caves - Madhya Pradesh

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उदयगिरी की गुफाएं - मध्य प्रदेश एकमुखी शिवलिंग गुफा संख्या (4) उदयगिरी मध्य प्रदेश में विदिशा के निकट स्थित एक गुप्त कालीन गुफा है। यह गुफा अपने अंदर पौराणिक आख्यान तथा शिल्प कलाओं की खूबसूरती को समेटे हुए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहा कुल 20 गुफाओं का समूह है। यह गुफाएं बेतवा  की सहायक नदी बेस नदी के तट पर स्थित है। गुफाएं पांचवी शताब्दी के आरंभिक काल कि है । चट्टानों को काटकर बनाई गई इन गुफाओं के भीतर भारत के प्राचीनतम मंदिर और उत्कृष्ट कलाकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियां मौजूद है। इन गुफाओं से प्राप्त शिलालेखों के आधार पर यह स्पष्ट है कि इनका निर्माण गुप्त राजाओं द्वारा कराया गया है। इन गुफाओं का संबंध हिंदू तथा जैन धर्म से है । विदिशा से वैसनगर होते हुए उदयगिरि पहुंचने का मार्ग है। गुफाओं की कटाई करके छोटे छोटे कमरों के रूप मे गुफाओं का निर्माण किया गया है । गुफा संख्या 1 और 20 को जैन धर्म का माना गया है । इन गुफाओं से प्रस्तर मूर्तियों के प्रमाण मिले हैं। उदयगिरी को पहले निचैगिरी के नाम से भी जाना जाता था ।  कालिदास ने भी इसे इसी नाम से संबोधित किया है।  वराह प्रतिमा गुफा संख्या (5

Elephanta Caves - Maharashtra

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 एलिफेंटा गुफ़ा ( महाराष्ट्र ) एलिफेंटा भारत में स्थित महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले में धारापुरी द्वीप पर समुद्र से घिरी हुई तथा  हिंदू धर्म को दर्शाती  कुल सात गुफाओं का समूह है  । Gateway of India से इन गूफाओं की दूरी 12 km है । गुफाएं मुख्यतः भगवान शिव को समर्पित है । इन गुफाओं का निर्माण काल 5-8 वी सदी का माना जाता है । यहां कुछ बौद्ध स्तूप एवं टीले भी है जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के है ।  गुफाओं में चट्टानों को काटकर बनाई गई पत्थर की मूर्तियां हैं ।  यह मूर्तियां हिंदू और बौद्ध विचारों और प्रतिमा विज्ञान के समन्वय को दर्शाती हैं। इनमे दो गुफाएं बौद्ध धर्म को समर्पित है , शेष पांच गुफाएं भगवान शिव को समर्पित है । गुफाएं ठोस बेसाल्ट चट्टान को तराशकर  बनाई गई हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश कलाकृति विकृत और क्षतिग्रस्त है। मुख्य मंदिर के अभिविन्यास के साथ-साथ अन्य मंदिरों के सापेक्ष स्थान को एक मंडल पैटर्न में रखा गया है। इन गुफाओं की नक्काशी हिंदू पौराणिक कथाओं का वर्णन करती है, जिसमें (17.9 फीट) की विशाल अखंड त्रिमूर्ति सदाशिव (तीन मुख वाले शिव), नटराज (नृत्य के भगवान) और यो

Jogimara Caves Madhya Pradesh

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 Jogimara Caves Madhya Pradesh/ Chattisgarh जोगीमारा कि गुफाएँ छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक हैं। ये गुफ़ाएँ अम्बिकापुर (सरगुजा ज़िला) से 50 किलोमीटर की दूरी पर रामगढ़ पहाड़ी पर स्थित है । जोगीमारा गुफा के साथ एक अन्य गुफा सीताबोंगरा जो कि विश्व कि प्राचीनतम नाट्यशाला मानी जाती है स्थित है । इसका स्थानीय नाम डंडोर है । गुफा की छतों पर चित्र है , आकृतियां बौनी तथा अनुपातहीन बनाई गई है । पृष्टभूमि पर लाल रंग से चित्र बनाएं गए हैं। चित्रों में हिरौंजी, लाल खड़िया , हरा और सफेद रंग भरा गया है। यहां से ब्राह्मी लिपि में अभिलेख प्राप्त है । चित्र लय तथा गति से युक्त है । अन्य गुफाएं लक्ष्मण बोंगरा , वशिष्ठ गुफा , कबीर चौरा , पौड़ी देवरी, सिंह द्वार , रावण द्वार भी प्रसिद्ध है । जोगीमारा गुफ़ाओं की भित्तियों पर सबसे प्राचीन भित्तिचित्र अंकित हैं। ये शैलकृत गुफ़ाएँ हैं, अजंता से पूर्व इन गुफाओं का चित्रण हुआ था। यह गुफाएं वरुण देवता तथा जैन धर्म से संबंधित है । जिनमें 300 ई.पू. के कुछ रंगीन भित्तिचित्र विद्यमान हैं। चित्रों का निर्माण काल डॉ. ब्लाख ने यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख